रविवार, 17 जनवरी 2010

मेरे देश की धरती

जन-जन की दुलारी है, मेरे देश की धरती।

जन्नत से भी प्यारी है, मेरे देश की धरती।।

बहु रंग, विविध बोलियां, फिर भी सभी हैं एक,

हर फूल की क्यारी है, मेरे देश की धरती।।

अल्लाह कहीं राम, महावीर के उपदेश,

नानक ने निहारी है, मेरे देश की धरती।।

सतसंग, इबादत की मशालों के नूर से,

हर रात उजारी है, मेरे देश की धरती।।

फिरका-परस्तियों की जो नज़रें उठे इधर,

फिर तेज कटारी है, मेरे देश की धरती।।

नफरत की हवाओं का यहां काम नहीं है,

बस प्रेम-पूजारी है, मेरे देश की धरती।।

-महेश सोनी